नई दिल्लीः क्या आप जानते हैं कि कृषि का कॉर्पोरेटीकरण कर किसानों की आय दोगुनी करने का विचार कहां से आया था? दस्तावेजों से यह प्रमाणित होता है कि इसके पीछे बीजेपी से दोस्ताना ताल्लुक रखने वाले एक कारोबारी का नीति आयोग के समक्ष रखा गया एक प्रस्ताव था । इस प्रस्ताव के बाद ही एक टास्क फोर्स (कार्यबल) का गठन किया गया जिसने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि के कॉर्पोरेटीकरण की वकालत करने वाली रिपोर्ट तैयार की ।
अपने प्रस्ताव पर नीति आयोग को रज़ामंद कराने वाले शरद मराठे नाम के यह कारोबारी कृषि, किसानी या इससे जुड़ी किसी भी गतिविधि के विशेषज्ञ नहीं हैं, बल्कि वे एक सॉफ्टवेयर कंपनी चलाने वाले कारोबारी हैं ।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों से यह पता चलता है कि नीति आयोग ने इस कारोबारी की संदिग्ध कार्यशैली को बेहद तेज़ी और मुस्तैदी से अपनाया - यानी भविष्य में एक ऐसी प्रणाली की दिशा में कार्य किया जिसमें किसान अपनी ज़मीन कॉर्पोरेट शैली में काम करने वाली कृषि कारोबार कंपनियों को पट्टे पर दें एवं प्रभावी रूप से उन कंपनियों के सहयोगी के तौर पर काम करें ।
आयोग ने बाद में इस व्यवसायी को टास्क फोर्स में नियुक्त कर दिया । टास्क फोर्स ने ज़्यादातर परामर्श कृषि वस्तुओं के व्यापार में शामिल बड़े कॉर्पोरेट घरानों जैसे अडानी समूह, पतंजलि, बिगबास्केट, महिंद्रा समूह और आईटीसी इत्यादि से ही किया ।
किंतु इस टास्क फोर्स- जिसका उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संकल्पना के अनुरूप कृषि कार्य पर निर्भर रहने वाले 60 प्रतिशत भारतीयों की आय दोगुना करना था- ने 2018 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपने से पहले किसी किसान, अर्थशास्त्री या कृषि से जुड़े किसी संगठन से राय मशविरा नहीं किया । यह रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है ।
इसके दो साल बाद भारत खेती में कॉर्पोरेट खिलाड़ियों को अनुमति देने और कृषि बाजारों को नियंत्रणमुक्त करने के लिए तीन विवादास्पद क़ानून लाने के मोदी सरकार के फैसले पर सबसे लंबे समय तक चलने वाले किसानों के विरोध प्रदर्शनों का साक्षी बना । राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसान विरोध प्रदर्शन में बैठे । प्रदर्शनकारी किसानों में से कम से कम 500 किसानों की गर्मी, ठंड या कोविड जैसी वजहों से मौत हो गई । अंततः सरकार को इन कानूनों को रद्द करने पर मजबूर होना पड़ा ।
दो भागों वाली इस श्रृंखला के पहले भाग से पता चलता है कि सरकार ने किस तरह किसानों की आय दोगुना करने के प्रधानमंत्री के महत्वाकांक्षी वादे की दिशा में अपने कदम बढ़ाए । यह दस्तावेज़ यह दर्शाते हैं कि किस प्रकार कृषि क्षेत्र में बग़ैर किसी अनुभव वाले व्यक्ति का प्रस्ताव प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच जाता है । साथ ही इन दस्तावेज़ों से देश के बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र में सरकार की लापरवाही भी उजागर होती है ।
यह पूरा वाकया एक चिट्ठी से शुरू होता है ।
शरद मराठे ने अक्टूबर 2017 में नीति आयोग के तत्कालीन वाइस चेयरमेन (उपाध्यक्ष) राजीव कुमार को यह चिट्ठी लिखी जिसमें कृषि में सुधार के लिए एक लंबे चौड़े दृष्टिकोण और कॉन्सेप्ट नोट की रूपरेखा पेश की गई ।
मराठे और राजीव कुमार आपस में परिचित थे, जो बहुत हद तक यह दर्शाता है कि सरकार के नीति आयोग जैसे संगठनों में हर साल नए विचारों से भरी हज़ारों ठंडे बस्ते में जाने वाली चिट्ठियों एवं ई-मेलों के बीच मराठे का पत्र तुरंत क्यों चुन लिया गया । हालांकि बीजेपी से मराठे की नज़दीकियां होना यहां ज़्यादा महत्वपूर्ण बात है क्योंकि वे बीजेपी की ओवरसीज़ फ्रेंड इकाई (प्रवासी मित्र इकाई) के प्रमुख के साथ अपनी मैत्री के बारे में बढ़ा चढ़ाकर बताते रहे हैं ।
सरकार के साथ मराठे के संबंध इतने गहरे हैं कि इनकी बदौलत वे उस सरकारी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बन पाए जिसने सितंबर 2019 में स्पेन की राजकुमारी से मुलाकात की थी । यह मुलाकात भारत के शीर्ष ग्रामीण बैंक नियामक- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण नियामक बैंक (नाबार्ड) में हुई थी ।
मराठे, जो अमेरिका से बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर डिग्री प्राप्त मैकेनिकल इंजीनियर हैं, अमेरिका में युनिवर्सल टेक्निकल सिस्टम्स इंक. नामक एक सॉफ्टवेयर कंपनी चलाते हैं और भारत में युनिवर्सल टेक्निकल सिस्टम्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड नामक एक अन्य कंपनी भी चलाते हैं ।
मराठे ने हमें बताया- “मैं 60 के दशक से अमेरिका में रह रहा हूं ।“ “मेरी रुचि उन विषयों में है जिनका समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है । मैं अपने समय का एक हिस्सा अपनी सॉफ्टवेयर कंपनी चलाने में बिताता हूं... और दूसरे हिस्से के बारे में मैं ये बताना चाहूंगा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा क्या सीखा है जिसे मैं सामने ला सकूं और जिसका समाज पर व्यापक प्रभाव पड़े ।“
हालांकि भारत में नीति निर्माण करने वाले हलकों में उनकी प्रसिद्धि का कारण कुछ और था । सरकारी दस्तावेज़ों से पता चलता है कि वह पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान भारत में सॉफ्टवेयर पार्क स्थापित करने का सुझाव देने में शामिल थे ।
उत्तर प्रदेश में 2016 में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के ख्वाब के बारे में बात की थी । इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आइडिया इकट्ठे किए जा रहे थे । मराठे द्वारा पेश ब्लूप्रिंट- “डबलिंग ऑफ फार्मर्स इनकम थ्रू मार्केट ड्रिवन, एग्री लिंक्ड मेड इन इंडिया” को नीति आयोग ने हाथोंहाथ अपना लिया ।
मराठे ने दावा किया कि उनके पास नया मौलिक एवं व्यावहारिक समाधान है जिसका सरकार को परीक्षण करना चाहिए एवं तेज़ी से कुछ कदम उठाने चाहिए मसलन- किसानों द्वारा पट्टे पर ली गई ज़मीन को एक साथ लाना, सरकारी मदद से एक बड़ी विपणन कंपनी बनाना, साथ ही प्रसंस्करण एवं कृषि कार्य हेतु छोटी कंपनियों का निर्माण करना । इन कंपनियों को कृषि उत्पाद बनाने और बेचने के लिए मिलकर कार्य करना था । जो किसान अपनी ज़मीन पट्टे पर देते वो भी इसका हिस्सा हो सकते थे एवं मिलने वाले लाभ के भागीदार बन सकते थे । इससे उन्हें अधिक पैसा कमाने में मदद मिलती और खेती बेहतर होती ।
उन्होंने इस पूरे कार्य की निगरानी के लिए एक विशेष 'टास्क फोर्स' गठित करने की सिफारिश की । साथ ही एक कदम और आगे बढ़ाते हुए उन्होंने उन 11 लोगों की सूची बनाई जिन्हें उनके मुताबिक इस टास्क फोर्स का सदस्य होना चाहिए था । उन्होंने स्वयं को और तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को उस सूची में शामिल किया ।
मराठे केवल इसी टास्क फोर्स के ही सदस्य नहीं थे । वर्ष 2018 में, सॉफ्टवेयर कंपनी के इस मालिक को आयुष (पारंपरिक चिकित्सा) क्षेत्र की बेहतरी के लिए आयुष मंत्रालय की टास्क फोर्स का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था- किसानों की आय में बढ़ोतरी करने वाली टास्कफोर्स की तरह यह क्षेत्र भी उनकी विशेषज्ञता से मेल नहीं खाता था ।
मराठे ने बाद में बढ़ते न्यूट्रास्युटिकल (पौष्टिक-औषध) बाजार का लाभ उठाने के लिए खाद्य एवं न्यूट्रास्युटिकल व्यवसाय में शामिल अठारह कंपनियों को चलाने वाले एक सुस्थापित व्यवसायी संजय मारीवाला के साथ एक अलग गैर-लाभकारी कंपनी स्थापित की थी । मराठे ने किसानों की आय संबंधी टास्क फोर्स (कार्यबल) में शामिल किए जाने के लिए जिन 11 नामों की अनुशंसा की थी, उनमें मारीवाला का नाम भी शामिल था ।
नीति आयोग के समक्ष पेश मराठे के कॉन्सेप्ट नोट में किसानों की आय दोगुनी करने के संबंध में अनिवासी भारतीयों और उद्यमियों से सुझाव लेने के लिए एक आउटरीच अभियान का भी प्रस्ताव रखा गया था । उन्होंने विशेष रूप से एक ऐसे व्यक्ति को इस अभियान में शामिल करने की बात की जिसे वह जानते थे । इस शख़्स का नाम है विजय चौथाईवाले, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक आयोजित करने के लिए जाने जाते हैं और भारतीय जनता पार्टी के विदेश नीति विभाग और ओवरसीज़ फ्रेंड्स युनिट (प्रवासी मित्र इकाई) में महत्वपूर्ण पदों पर हैं । हालांकि नीति आयोग ने इस आइडिया में रुचि ज़ाहिर की, किंतु अंततः चौथाईवाले ने ही इसमें भाग नहीं लिया, जिससे आधिकारिक आउटरीच अभियान हेतु पार्टी सदस्य को चयनित किए जाने के पीछे निहित कारण स्पष्ट नहीं हो पाए ।
आयोग ने पूरी मुस्तैदी से मराठे की योजनाओं का पालन किया । कुछ ही दिनों में नीति आयोग ने फैसला किया कि मराठे के कॉन्सेप्ट नोट पर एक उच्च स्तरीय बैठक में चर्चा की जाएगी । उस समय कृषि राज्य मंत्री रहे गजेंद्र सिंह शेखावत को सरकार एवं सरकार के थिंक टैंक के अन्य बड़े नौकरशाहों के साथ इस उच्च स्तरीय बैठक में भाग लेने के लिए कहा गया, जिससे यह ज़ाहिर होता है कि मराठे के कॉन्सेप्ट नोट पर पर्दे के पीछे पहले से ही बातचीत हो चुकी थी । शेखावत इस बैठक में शामिल हुए ।
नीति आयोग ने सरकारी अधिकारियों की यह उच्च स्तरीय बैठक आयोजित की, जिसमें भाग लेने वाले सोलह प्रतिभागियों में से सात मराठे की सिफारिश के अनुसार चुने गए थे । इस सभी ने एक टास्क फोर्स (कार्यबल) का गठन करने का फैसला लिया जो "बिज़नेस प्लान संबंधी विवरण" के साथ एक "फ्रेमवर्क का विकास करेगी" ।
दिनांक 8 दिसंबर, 2017 को नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने एक फाइल नोटिंग में लिखा- "टास्क फोर्स की स्थापना के प्रस्ताव पर पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) के साथ चर्चा की गई है और हम आगे बढ़ने से पहले उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार करेंगे ।"
नीति आयोग ने पीएमओ की उस प्रतिक्रिया का उल्लेख तो नहीं किया है लेकिन उसका अनुमान लगाया जा सकता है । जनवरी 2018 तक, यानी मराठे द्वारा अपना मसौदा भेजे जाने के तीन महीने के भीतर आयोग ने आधिकारिक तौर पर टास्क फोर्स का गठन कर दिया ।
टास्क फोर्स (कार्यबल) के गठन की घोषणा करते हुए एक ज्ञापन में आयोग ने कहा, "सामाजिक उद्यमियों एवं बाज़ार द्वारा संचालित कृषि-लिंक्ड मेक इन इंडिया दृष्टिकोण के ज़रिए इस कार्य को प्राथमिकता दी जाएगी ।"
नीति आयोग का रिकॉर्ड यह नहीं दर्शाता है कि मराठे के कहने पर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन गुपचुप तरीके से क्यों किया गया, जबकि सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने के तौर तरीकों के बारे में पहले ही एक बड़ी आधिकारिक अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन कर दिया था । आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में इस टास्क फोर्स का संक्षेप में उल्लेख किया गया है, जिसमें उन सदस्यों या परामर्शदाताओं का ज़िक्र नहीं किया गया है जिनसे टास्क फोर्स ने बात की । न टास्क फोर्स की रिपोर्ट ही सार्वजनिक की गई ।
किसानों की आय दोगुनी करने के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के दो माह के भीतर अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन कर दिया गया था । इसके एक साल एवं चार महीने बाद समिति ने 14 भागों वाली अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना शुरू किया ।
इस रिपोर्ट में खेती, कृषि उत्पादों और ग्रामीण आजीविका को बढ़ाने संबंधी सभी पहलुओं का ज़िक्र किया गया है । इससे प्रधानमंत्री द्वारा घोषित समय सीमा तक किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकी । पहली बात तो यह कि 3,000 से अधिक पेज वाली इस रिपोर्ट को कई लोगों ने पढ़ा ही नहीं होगा । किंतु इसे सार्वजनिक कर दिया गया ।
वास्तव में जिस महीने मराठे वाली टास्क फोर्स की स्थापना की गई थी, उस समय इस आधिकारिक समिति ने अपनी रिपोर्ट का 13वां और अंतिम भाग जमा किया था । समिति ने मराठे के प्रस्ताव की तर्ज पर एक ऐसी टास्क फोर्स के गठन की आवश्यकता बताई जो किसानों की आय दोगुनी करने हेतु बिज़नेस मॉडल खोजने के लिए गठित की गई हो ।
अब नीति आयोग की इस टास्क फोर्स ने पूरी गति से काम करना शुरू कर दिया था । साधारण प्रतीत होने वाली इन महत्वपूर्ण चीजों की व्यवस्था फौरन की गई । मराठे ने काम करने के स्थान और डेस्कटॉप से लेकर यात्रा भत्ते तक कई तरह की सुविधाएं मांगीं । आयोग ने फौरन उन्हें उपलब्ध कराया ।
कृषि कार्यकर्ताओं समेत अनेक हितधारकों से परामर्श करने वाली अंतर-मंत्रालयी समिति के विपरीत मराठे द्वारा सुझाई गई टास्क फोर्स ने मुख्य रूप से कॉर्पोरेट घरानों के मंच के रूप में कार्य किया ।
अपनी पहली बैठक में टास्क फोर्स ने अपना एजेंडा तैयार किया । मराठे ने कहा कि "कृषि कार्य (एग्रीकल्चर) से कृषि व्यवसाय (एग्री-बिज़नेस) की ओर बढ़ने का यह सही समय है ।"
'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' ने नीति आयोग, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और इस टास्क फोर्स से परामर्श लेने वाली कंपनियों को विस्तार से अपने प्रश्न भेजे। इनमें से किसी ने भी रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद जवाब नहीं दिया ।
(इस श्रृंखला के अंतिम भाग में किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से बिज़नेस मॉडल खोजने हेतु गठित टास्क फोर्स में हुई कॉर्पोरेट लॉबिंग का खुलासा किया गया है)