नई दिल्ली: बीती 8 फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर संसद में एक श्वेतपत्र पेश किया, जिसमें यह दिखाने की कोशिश की गई थी कि कैसे यह सरकार विरासत में मिली खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लेकर आई। श्वेतपत्र में 'भ्रष्टाचार' के तहत एक सेक्शन 1.86 लाख करोड़ रुपए के कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले को समर्पित किया गया था, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान हुआ था।
इसमें दावा किया गया कि मोदी सरकार ने कोयला सुधारों के माध्यम से "कोयला संसाधनों का पारदर्शी आवंटन" सुनिश्चित किया और देश को "कोयला लाइसेंसिंग के मामले में अंधकार से प्रकाश की ओर" ले गई।
इस दस्तावेज़ में कहा गया, “कोयला घोटाले ने 2014 में देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया था।”
मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने हजारों करोड़ रुपए मूल्य के 200 से अधिक कोयला ब्लॉक और 41 बिलियन टन से अधिक कोयले को वितरित करने के लिए 2015 में एक नई कोयला नीलामी और आवंटन व्यवस्था की शुरुआत की।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पाया है कि श्वेतपत्र में किए गए दावों के विपरीत, केंद्र सरकार को शुरुआती चेतावनी मिली थी कि उसकी नई कोयला व्यवस्था खतरे में पड़ चुकी है और इससे "घोटालों को बढ़ावा मिलेगा"। ये चेतावनियां दो मौजूदा केंद्रीय मंत्रियों की ओर से आईं थीं जिन पर प्रधानमंत्री मोदी को भरोसा है। यह नोट भेजने के समय दोनों सांसद थे -- एक भाजपा से और दूसरे स्वतंत्र के रूप में इसका समर्थन कर रहे थे।
उन्होंने आगाह किया कि कोयला वितरण के लिए "जल्दबाजी में तैयार किए गए" नियम निजी कंपनियों को नीलामी में धांधली करने और लाभ उठाने में सहायक होंगे, जिससे जनता को नुकसान होगा। यह गोपनीय चेतावनी तत्कालीन केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली और पूर्व कोयला मंत्री पीयूष गोयल को भेजी गई थी। एक सांसद ने पत्र की एक प्रति प्रधानमंत्री मोदी को भी भेजी थी।
सरकार ने उनकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया। इसके बजाय, सार्वजनिक रूप से नई कोयला नीलामी व्यवस्था को पारदर्शी बताया और नए नियमों के तहत दर्जनों खदानों का आवंटन और नीलामी की। लगभग एक साल बाद, जुलाई 2016 में दोनों सांसद सही साबित हुए। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने संसद में एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें सबूत दिया गया कि कोयले की नीलामी कितनी संदिग्ध थी। रिपोर्ट में निजी कंपनियों द्वारा मिलीभगत और नीलामी में संभावित धांधली के कई मामलों की ओर इशारा किया, जिनमें सरकार को ऑप्टिमम फाइनेंशियल रिटर्न से कम कीमत देकर कोयला ब्लॉक हासिल किए गए थे।
तब तक, दोनों सांसद जिन्होंने अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करके आंतरिक पत्रों के माध्यम से सरकार को चेतावनी दी थी, लेकिन इसे संसद या सार्वजनिक मंचों पर नहीं उठाया था, उन्हें पदोन्नत करके मंत्री बना दिया गया था। उनमें से एक थे भाजपा के आरके सिंह, जिन्हें ऊर्जा मंत्रालय का प्रभारी बनाया गया और दूसरे थे भाजपा का समर्थन करने वाले स्वतंत्र सांसद राजीव चंद्रशेखर, जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री बनाया गया।
सीएजी ने 2015 में की गई नीलामी की पहली दो किश्तों की जांच की थी, जिनमें बड़ी संख्या में 'रेडी-टू-यूज़' खदानें निजी कंपनियों को सौंपी गईं। जैसा कि नाम से पता चलता है, रेडी-टू-यूज़ खदानों में तुरंत खनन किया जा सकता है और इनकी परिचालन लागत न्यूनतम होती है। निजी कंपनियों में इनकी सबसे अधिक मांग है और सरकार आमतौर पर उम्मीद करती है कि इन खदानों से अच्छी कीमत मिलेगी।
द कलेक्टिव ने हाल ही में खुलासा किया था कि कैसे निजी कंपनियों द्वारा नीलामी में धांधली की गई, मनमाने फैसले लिए गए और प्रतिस्पर्धा का गला घोंटा गया।
बाद के चरणों में सरकार ने नीलामी के नियमों में बदलाव किया और बाद में 2020 में इसे पूरी तरह से नया रूप दिया। लेकिन तब तक बहुत नुकसान हो चुका था।
प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार को चेतावनी देने वाले दोनों मंत्रियों के पत्र पहली बार द कलेक्टिव द्वारा सार्वजनिक किए जा रहे हैं। भाजपा के 10 साल के शासन में यह शायद पहली बार है कि अपनी ही सरकार में घोटालों के खिलाफ पार्टी के विश्वसनीय और प्रमुख सदस्यों द्वारा इस तरह की चेतावनी सामने आई है।
“सांसदों की चेतावनियां बिल्कुल सही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि खदानों का आवंटन राष्ट्रहित में होना चाहिए। सरकार ने एक ऐसी नीलामी प्रणाली अपनाने का फैसला किया जो, विशेष रूप से पहले दो चरणों में, खामियों से भरी थी,” कोयला क्षेत्र के एक शोधकर्ता और कार्यकर्ता ने कहा, लेकिन सरकार की सतर्कता को देखते हुए उन्होंने नाम न छापने का अनुरोध किया। “कोयला ब्लॉकों को विभिन्न श्रेणियों में बांटने और बोली लगाने वाली कंपनियों की संख्या को सीमित करने से खदानों के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने का सरकार का खुद का घोषित उद्देश्य विफल हो गया।”
द कलेक्टिव ने राजीव चन्द्रशेखर, आरके सिंह और कोयला मंत्रालय को विस्तृत प्रश्न भेजे। उनकी प्रतिक्रिया मिलते ही रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी।
भाजपा के पास था सही करने का मौका
अगस्त 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में 204 कोयला खदानों के आवंटन रद्द कर दिए। अदालत ने 1993 और 2011 के बीच किए गए इन आवंटनों को "मनमाना और अवैध" पाया।
इस अवधि में सरकारों ने नौकरशाहों की एक स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिशों के आधार पर कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित किए थे। उपयुक्त खरीदार को चुनने के लिए कोई प्रतिस्पर्धी नीलामी आयोजित नहीं की गई जो आवंटित कोयला ब्लॉकों के लिए उचित राशि का भुगतान कर सके।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मनमानी प्रक्रिया से कंपनियों को फायदा मिला जबकि सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। इस तरह सरकारी स्वामित्व वाले मूल्यवान प्राकृतिक संसाधनों को सस्ते दामों पर निजी हाथों में सौंप देने से जनता में आक्रोश फैल गया।
तब सीएजी ने अनुमान लगाया था कि इस त्रुटिपूर्ण आवंटन प्रक्रिया के कारण सरकार को 1.86 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। मतलब, अगर सरकार ने प्रतिस्पर्धात्मक रूप से ब्लॉक आवंटित किए होते तो उसे एक ट्रिलियन रुपए से अधिक की कमाई होती।
जब 2012 में इस सीएजी रिपोर्ट का मसौदा पहली बार मीडिया में लीक हुआ, तब भाजपा विपक्ष में थी। उसने इस "कोयला घोटाले" लेकर बहुत बवाल मचाया, और यह कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए II सरकार को हिलाकर रख देने वाले सबसे बड़े घोटालों में से एक बन गया। फिर इसका इस्तेमाल चुनावी फायदे के लिए किया गया। अपने 2014 के चुनावी घोषणापत्र में भाजपा ने कोयला आवंटन के लिए निष्पक्ष और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था का वादा किया था।
भाजपा के सत्ता में आने के तीन महीने बाद सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया। नई केंद्र सरकार के पास एक नई शुरुआत करने का अच्छा मौका था।
सरकार तुरंत एक नए कानून का मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया जिसके तहत नीलामी होगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दो महीने बाद ही, अक्टूबर 2014 में सरकार ने अपना पहला अध्यादेश जारी किया, जिसने कोयला क्षेत्र को आकार दिया। दिसंबर 2014 में इसकी जगह एक दूसरा अध्यादेश लाया गया और फरवरी 2015 में कोयला खान (विशेष उपबंध) अधिनियम लागू किया गया।
भाजपा के वादे के मुताबिक अब कोयला ब्लॉकों की नीलामी की जानी थी। लेकिन नई नीलामी प्रक्रिया में ही बड़ी खामियां थीं, जैसा कि सिंह और चंद्रशेखर ने उनके पत्रों में बताया गया है।
सिंह की प्रारंभिक चेतावनी
दिसंबर 2014 में दूसरे अध्यादेश से ठीक पहले, बिहार के आरा से भाजपा के लोकसभा सांसद आरके सिंह प्रस्तावित कानून के बारे में चेतावनी देने वाले पहले व्यक्ति थे। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी सिंह ने राजनीति में आने से पहले बिहार के गृह सचिव के रूप में कार्य किया था। उन्होंने पहली बार 2014 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था।
सिंह ने अपने पत्र में कहा कि पहले वह अपनी चिंताओं को संसद में व्यक्त करने की सोच रहे थे, लेकिन फिर उन्होंने इसे सरकार के साथ अधिक सावधानी से साझा करने का फैसला किया।
उन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखे अपने पत्र की शुरुआत में ही कहा, "निम्न बिंदु मैंने कोयला अध्यादेश के संबंध में लिखे था, लेकिन दोबारा विचार करने पर मैंने इन सवालों को सदन में उठाने के बजाय आपके सामने लाना बेहतर समझा।"
उन्होंने कहा, "क्या केवल निजी बिजली कंपनियों, सीमेंट कंपनियों और कोयला कंपनियों के लिए सीमित नीलामी आयोजित किए जाने से खुली नीलामी की तुलना में कोयला खदानें बहुत कम कीमतों पर आवंटित नहीं कर दी जाएंगी।"
दरअसल नए कानून में कोयला खदानों का इस आधार पर वर्गीकरण कर दिया गया था कि उनसे किन संयंत्रों के लिए कोयला निकाला जाएगा, जैसे बिजली, सीमेंट, इस्पात आदि। केवल वही कंपनियां जिनके पास यह संयंत्र हैं, उस उद्देश्य हेतु अलग रखे गए ब्लॉकों के लिए बोली लगा सकती थीं। सिंह इसी बात का ज़िक्र कर रहे थे।
"यदि ऐसा है, तो क्या यह उपरोक्त निजी कंपनियों को भारी लाभ पहुंचाने और उसी अनुपात में सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने के समान नहीं होगा," उन्होंने जानना चाहा।
उन्होंने कहा, "किसी भी सीमित निविदा में गुटबंदी हो जाती है, और सदस्य मिलीभगत करके जानबूझकर कम कीमत लगाते हैं -- जिससे सरकारी खजाने को नुकसान होता है।"
सिंह की चेतावनी बिलकुल सही साबित हुई।
जैसा कि सीएजी रिपोर्ट में बताया गया है, जब नीलामी शुरू हुई तो सरकार ने बिना कारण बताए चार कोयला ब्लॉकों की नीलामी को रद्द कर दिया। जुलाई 2017 में संसद में इसके बारे में बोलते हुए तत्कालीन कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने स्वीकार किया कि नीलामी में कुछ गड़बड़ियां थीं।
"बोली में गुटबंदी की कुछ शिकायतें प्राप्त हुई थीं। चूंकि सरकार ने पाया कि चार कोयला खदानों -- गारे पाल्मा IV/2 और IV/3, गारे पाल्मा IV/1 और तारा -- के लिए लगाई गई बोलियां उनके उचित मूल्य के अनुरूप नहीं थीं, इसलिए इन बोलियों को मंजूरी नहीं दी गई," उन्होंने कहा। "गुटबंदी/मूल्य में हेरफेर की संभावना को रोकने के लिए, नीलामी की डिज़ाइन को थोड़ा संशोधित किया गया है।"
लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हुई।
पहले दौर की नीलामी आयोजित होने के एक साल बाद, सीएजी ने पाया कि कम से कम ग्यारह ब्लॉकों में इस तरह की मिलीभगत की गई थी, जहां उसे "यह आश्वासन नहीं मिल सका कि अपेक्षित स्तर पर प्रतिस्पर्धा हुई"। दूसरे शब्दों में, सीएजी संकेत दे रहा था कि सरकार को उतना राजस्व नहीं मिला जितना मिल सकता था। इन ग्यारह मामलों में वे चार खदाने शामिल नहीं थीं जिनके बारे में पीयूष गोयल ने संसद में बात की थी।
सिंह ने अपने पत्र में कहा था, "'आवंटन' और 'सीमित निविदा' की अवधारणाएं खतरनाक हैं और इनसे घोटाले हो सकते हैं -- घोटाले होंगे।"
जबकि "सीमित निविदा" का तात्पर्य इस प्रतिबंध से था कि कोयला ब्लॉकों के लिए कौन बोली लगा सकता है, "आवंटन" का अर्थ उस पुरानी व्यवस्था की वापसी से था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
नई व्यवस्था में केंद्र सरकार को यह अधिकार देने का प्रस्ताव था कि वह सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को बिना किसी नीलामी के कोयला ब्लॉक दे सकती है। सिंह की चेतावनी यहां भी सही साबित हुई।
जैसा कि द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पहले बताया था, सरकारी कंपनियों ने उनकी ओर से खनन करने का काम निजी कंपनियों को सौंप दिया है। अडानी समूह को सबसे ज्यादा ऐसे ठेके मिले हैं। मार्च 2020 में मोदी के पीएमओ ने स्वयं इनमें से कुछ एमडीओ अनुबंधों को "अनुचित" करार दिया था।
सिंह की चिंताओं को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।
चन्द्रशेखर ने भी किया था सावधान
फरवरी 2015 में, नए कोयला कानून के लागू होने से कुछ हफ्ते पहले, राजीव चंद्रशेखर ने भी पीयूष गोयल को इसी तरह का एक पत्र लिखा था।
उन्होंने कहा, "मैं आपका ध्यान दिल्ली उच्च न्यायालय की हालिया टिप्पणी की ओर आकर्षित करता हूं जिसमें (नए कोयला) अध्यादेश को 'पूरी तरह से अस्पष्ट' बताया गया है।" वह उस मामले में अदालत की टिप्पणी का जिक्र कर रहे थे जो नीलामी शुरू होने से ठीक पहले कोयला ब्लॉक के निर्दिष्ट ‘अंतिम उपयोग’ (इंड यूज़) को बदलने के सरकार के फैसले के खिलाफ जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड ने दायर किया था।
उच्च न्यायालय की बेंच ने केंद्र सरकार से अंतिम उपयोग के आधार पर कोयला ब्लॉकों को बांटने की आवश्यकता पर भी सवाल उठाया था, जैसा कि आरके सिंह ने अपने आंतरिक नोट में किया था।
राजीव ने कहा, "यदि आपको याद हो, जब राज्यसभा में विधेयक पेश किया जा रहा था, तब मैंने आपके साथ अपने समान विचारों पर चर्चा की थी और विधेयक के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं और इसके मसौदे पर अपनी आपत्तियां व्यक्त की थीं।"
"अफसोस की बात है कि आपने इसे नजरअंदाज कर दिया।"
उस समय, चन्द्रशेखर कर्नाटक से निर्दलीय राज्यसभा सांसद थे। 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने सार्वजनिक रूप से अगले प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था। सितंबर 2016 में उन्होंने एनडीए केरल इकाई के प्रमुख का पद संभाला। 2020 तक वह भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बन गए और 2021 में उन्हें मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, जहां वह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री के रूप में कार्यरत हैं।
अपने पत्र में चंद्रशेखर ने गोयल को याद दिलाया कि "पिछली सरकारों में 2G, कोयला, लौह अयस्क आदि प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित कई विवादों और घोटालों" के बारे में जनता बहुत सचेत है।
उन्होंने याद दिलाया कि कैसे भाजपा के घोषणापत्र में इसे ठीक करने का वादा किया गया था।
उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश "जल्दबाजी में तैयार किया गया" था और "बुनियादी स्तर पर, यह विधेयक प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की नीति और सोच का पहला उदाहरण है।"
"सरकार को प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में कैसे काम करना चाहिए, इसको लेकर बने मानकों में मील का पत्थर साबित होने के बजाय, इस (अध्यादेश को) व्यापक रूप से निष्पक्ष नीलामी और अन्य मुद्दों पर एक समझौता माना जा रहा है।"
चंद्रशेखर ने गोयल को याद दिलाया कि उन दोनों ने पहले "कोयला क्षेत्र के स्वतंत्र विनियमन, मूल्य निर्धारण के लिए सच्ची, स्वतंत्र और निष्पक्ष नीलामी और पर्यावरण और उसके आसपास रहने वाले नागरिकों के प्रति खदानों का दायित्व, आदि मुद्दों पर" चर्चा की थी।
कोयला मंत्रालय की सफाई
पीयूष गोयल ने सितंबर 2015 में दोनों पत्रों का जवाब दिया, जब कोयला नीलामी की पहली किस्त समाप्त हो चुकी थी। दोनों के जवाब में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नए कानून द्वारा परिकल्पित नीलामी की व्यवस्था पारदर्शी है।
आरके सिंह को दिए अपने जवाब में उन्होंने सबसे पहले बताया कि द्विचरणीय नीलामी कैसे काम करेगी। पहले दौर में, जिसे तकनीकी दौर कहा जाता है, बोली लगाने वालों की रैंकिग की जाएगी और शीर्ष पांच या सभी बोली लगाने वालों में से 50%, जो भी अधिक हो, आगे 'वित्तीय दौर' में जाएंगे। इस दौर में सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को ब्लॉक मिलेगा।
गोयल ने दावा किया कि इस प्रक्रिया ने यह सुनिश्चित किया है कि "गुटबंदी और कोयला खदान के कम मूल्यांकन की संभावना उत्पन्न न हो।"
गोयल ने ऐसा उनके मंत्रालय द्वारा संभावित गुटबंदी और बोलियों के कम मूल्यांकन के कारण दो ब्लॉकों की नीलामी रद्द करने के बावजूद कहा।
इसी तरह, चंद्रशेखर को दिए जवाब में गोयल ने कहा कि नीलामी पारदर्शी और निष्पक्ष होगी। उन्होंने कहा, "प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए रखने के लिए कोयला खदानों/ब्लॉकों की नीलामी इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर ई-नीलामी मोड के माध्यम से की जाती है।"
हालांकि, गोयल और सरकार के पारदर्शिता के दावे बाद में कैग रिपोर्ट के साथ-साथ मीडिया में आई अन्य रिपोर्टों से झूठे साबित हुए।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ग्यारह मामलों में उसे "यह आश्वासन नहीं मिल सका कि अपेक्षित स्तर पर प्रतिस्पर्धा हुई थी"। इन मामलों में एक ही खदान के लिए बोली लगाने वाले कई प्रतिस्पर्धी एक ही मूल कंपनी या संयुक्त उद्यम से थे।