अहमदाबाद: साल 2014 से 2022 के बीच 22 करोड़ से अधिक अभ्यर्थियों ने केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन किया। इनमें से एक 27 वर्षीय प्रांजय (बदला हुआ नाम) भी थे। प्रांजय इंजीनियर थे, लेकिन उन्होंने एक ऐसी नौकरी के लिए आवेदन किया जिसके लिए केवल मैट्रिक पास होने की जरूरत थी -- यह केंद्र सरकार के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में एक टेकनीशियन की भूमिका थी। उन्होंने दिसंबर 2021 में आवेदन किया था। तब से कई बार परीक्षा हुई, और फिर परिणाम अचानक रद्द कर दिया गया। आज तीन साल बाद भी प्रांजय को नौकरी का इंतज़ार है।
"तीन साल का लंबा समय लगता है तो अभ्यर्थी निराश हो जाते हैं," उन्होंने कहा। प्रांजय हार नहीं मान सकते। उनका मानना है कि केंद्र सरकार की नौकरी 'सुरक्षा' प्रदान करेगी।
वह कहते हैं, "जब तक उम्र और अटेम्प्ट (परीक्षा में बैठने की सीमा) है, कोशिश जारी रखूंगा।"
प्रांजय इससे पहले भी सरकारी भर्तियों की असफल प्रक्रिया का सामना कर चुके हैं। राज्य स्तरीय सरकारी भर्तियों के साथ भी उनका ऐसा ही अनुभव रहा है। 2021 में हरियाणा लोक सेवा आयोग ने अपनी परीक्षाएं आयोजन के आठ महीने बाद बिना कोई कारण बताए रद्द कर दीं। इसके बाद, 2022 में वह बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बैठे, जिसे पेपर लीक हो जाने के बाद रद्द कर दिया गया। हाल ही में उन्होंने 16 जून को एक बार फिर यूपीएससी की सिविल सेवा प्रवेश परीक्षा दी है।
प्रांजय जैसे लाखों युवा भारतीय हर साल ऐसी कई परीक्षाओं में बैठते हैं। हर प्रयास में उन्हें मानसिक पीड़ा के साथ-साथ फॉर्म भरने की लागत और देश के विभिन्न हिस्सों में परीक्षा में बैठने से होने वाले शारीरिक तनाव का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा उन्हें पैसों की कमी से भी जूझना होता है। यह सब कुछ वह हर साल निकलने वाली कुछ सरकारी नौकरियों में से एक को पाने की आशा में करते हैं।
इस समस्या का कुछ हद तक समाधान करने के लिए केंद्र सरकार फरवरी 2020 में एक आशाजनक प्रस्ताव लेकर आई। प्रस्ताव था एक कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट, यानि सामान्य पात्रता परीक्षा का, जिसके द्वारा विभिन्न मिड और जूनियर-लेवल की नौकरियों के लिए उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा। हर साल लगभग तीन करोड़ अभ्यर्थी इन पदों के लिए आवेदन करते हैं।
इसका उद्देश्य था कि देश के युवाओं को केंद्र सरकार की विभिन्न शाखाओं और एजेंसियों द्वारा आयोजित की जानेवाली कई तनावपूर्ण और आर्थिक रूप से कमजोर करने वाली परीक्षाएं नहीं देनी पड़े। इस पहल के साथ, एक परीक्षा काफी होगी, और इसमें प्राप्त स्कोर के आधार पर अभ्यर्थी निर्दिष्ट स्तरों पर केंद्र सरकार की सभी नौकरियों के लिए आवेदन कर सकेंगे।
सरकार ने कहा कि इस परीक्षा को आयोजित करने के लिए वह एक नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी या एनआरए की स्थापना करेगी।
बड़े-बड़े दावों और विचारों और योजनाओं के महत्व को जरूरत से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर बताने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदत के अनुरूप, इस पहल की घोषणा भी ऐसे ही दावों के साथ की गई। मोदी ने इसे "करोड़ों युवाओं के लिए वरदान" बताया।
गृहमंत्री अमित शाह ने एक ट्वीट में कहा, "एनआरए मोदी सरकार द्वारा उठाया गया एक अभूतपूर्व कदम है क्योंकि यह एक परिवर्तनकारी समान भर्ती प्रक्रिया तैयार करेगा।"
आम तौर पर भारत में बेरोजगारी की गंभीर स्थिति को कम करके बतानेवाली सरकार द्वारा ऐसा कदम क्रांतिकारी नहीं तो कम से कम आशाजनक तो लग ही रहा था -- बशर्ते वास्तव में नौकरियां दी जाएं।
इस कदम से विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए अलग-अलग आवेदन करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के अलावा और भी कई उम्मीदें थीं। बार-बार पेपर लीक के कारण परीक्षाएं रद्द हो जाती थीं, और यह एक बड़ा मुद्दा बन गया था। अतः, उम्मीद की जा रही थी कि एनआरए द्वारा सभी नौकरियों के लिए एक, कथित रूप से कुशल परीक्षा प्रणाली से पेपर लीक को रोका जा सकेगा।
हालांकि, रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पाया कि इस घोषणा के चार साल बाद भी, एनआरए ने अभी तक एक भी पात्रता परीक्षा आयोजित नहीं की है। एजेंसी में कर्मचारियों की कमी बनी हुई है, और सरकार इस देरी के लिए हर बार अलग-अलग बहाने करती है जबकि एनआरए लगातार विफल हो रही है। केंद्र सरकार में शामिल होने के इच्छुक युवाओं के लिए एकल परीक्षा का वादा कागज पर ही रह गया है।
"जब सांसद या विधायक चुनना होता है तो सिस्टम बहुत अच्छी तरह से काम करता है। लेकिन, जब यही सिस्टम आम युवा भारतीयों को नौकरी के लिए भर्ती करता है, तो वह विफल हो जाता है। जाहिर तौर पर यह राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण होता है। सुचारू भर्ती परीक्षा आयोजित करने की राजनैतिक इच्छाशक्ति ही नहीं है," युवाओं में बेरोजगारी के मुद्दों पर काम करने वाले एक समूह, युवा हल्लाबोल के संस्थापक अनुपम (जो केवल अपने पहले नाम का उपयोग करते हैं) ने कहा।
हमने एनआरए को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी जिसका उन्होंने उत्तर नहीं दिया है। जब भी हमें जवाब मिलता है तो इस स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा।
भर्ती की अधूरी कोशिश
केंद्र सरकार ने 2020 के बजट भाषण में एनआरए की परिकल्पना प्रस्तुत की थी, जिसके संचालन के लिए शुरुआती तीन वर्षों में 1,517.57 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए थे।
तत्कालीन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था, "वर्तमान में उम्मीदवारों को एक जैसे पदों के लिए अलग-अलग समय पर कई एजेंसियों द्वारा आयोजित कई परीक्षाएं देनी पड़ती हैं। इसमें उनका बहुत समय, पैसा और मेहनत लगती है। उनकी इस कठिनाई को कम करने के लिए, गैर-राजपत्रित पदों पर भर्ती के लिए कंप्यूटर आधारित ऑनलाइन सामान्य पात्रता परीक्षा आयोजित करने हेतु एक स्वतंत्र, पेशेवर, विशेषज्ञ संगठन के रूप में एक राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी स्थापित करना प्रस्तावित है।"
यह घोषणा फरवरी 2020 में की गई थी। सरकार को सैद्धांतिक रूप से ही एनआरए के कामकाज की रूपरेखा तैयार करने में छह महीने और लग गए। अगस्त 2020 में इस निकाय को आधिकारिक तौर पर 'अधिसूचित' किया गया, जो बताता है कि एक सरकारी एजेंसी कानूनी तौर पर अस्तित्व में आ चुकी है।
यह तय किया गया कि एनआरए ग्रुप बी और सी (निचले स्तर के पद) के गैर-राजपत्रित पदों के साथ-साथ ग्रुप बी के ऐसे राजपत्रित पदों के लिए कंप्यूटर-आधारित परीक्षा आयोजित करेगी, जिनके लिए दूसरी सरकारी भर्ती एजेंसी -- संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) -- से परामर्श की आवश्यकता नहीं है।
यह केंद्र सरकार के विभिन्न हिस्सों में मध्य से जूनियर स्तर के पद हैं, जिनमें हाई स्कूल से लेकर स्नातक तक की योग्यता रखने वाले लोगों के लिए व्यापक अवसर हैं। ड्राइवर, कांस्टेबल, इलेक्ट्रीशियन, स्टेनोग्राफर, स्टाफ नर्स से लेकर अकाउंटेंट और सब-इंस्पेक्टर, सभी इन श्रेणियों में आते हैं।
दावों की हकीकत
सरकारी अधिसूचना को पढ़ने से ही पता चल जाता है कि कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (सीईटी) और एनआरए के लिए प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बड़े-बड़े वादों पर खरा उतरना संभव नहीं है।
सरकारी आदेश में बताया गया है कि एनआरए द्वारा आयोजित पात्रता परीक्षा तीन स्तरों के अभ्यर्थियों के लिए होगी: स्नातक, जिन्होंने 12वीं कक्षा पास कर ली है, और वे जिन्होंने 10वीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली है।
वास्तव में यह परीक्षा आवेदकों के लिए न तो एकमात्र थी और न ही निर्णायक। सरकार के अनुसार यह तीन मौजूदा सरकारी एजेंसियों: कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी), रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी), और इंस्टिट्यूट ऑफ़ बैंकिंग पर्सोनेल सिलेक्शन (आईबीपीएस) की देखरेख में 'गैर-तकनीकी' नौकरियों के लिए 'पहले स्तर' की परीक्षा थी। विशिष्ट पदों के लिए अभ्यर्थियों को इन तीन भर्ती एजेंसियों द्वारा ली जाने वाली अतिरिक्त परीक्षाएं देनी पड़ सकती थीं।
वास्तव में एनआरए की परीक्षा इन तीन सरकारी भर्ती एजेंसियों के आवेदकों को छांटने के लिए फ़िल्टर के रूप में डिज़ाइन की गई थी। इसका मतलब यह हुआ कि भारत में अब उतनी ही नौकरियों में भर्ती करने के लिए तीन के बजाय चार एजेंसियां हो गईं।
एनआरए की स्थापना के लिए जारी सरकारी आदेश में ऐसे कोई पुख्ता जानकरी नहीं थी कि नई एजेंसी कबतक पूरी तरह, या कम से कम आंशिक रूप से कामकाज शुरू कर देगी। आमतौर पर सामाजिक कल्याण के ऐसी हाई-प्रोफाइल योजनाओं के लिए सरकार लक्ष्य और समय सीमा स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है, और उनकी घोषणा बहुत धूमधाम से की जाती है।
अधिसूचना में कहा गया था कि शुरुआत में कुछ समय के लिए पात्रता परीक्षा साल में दो बार आयोजित की जाएगी। एनआरए "योजनाबद्ध तरीके से हर स्तर पर सीईटी की फ्रीक्वेंसी बढ़ाएगी ताकि एक ऐसा समय आए जब उम्मीदवार को उसके द्वारा चयनित तिथि और समय पर परीक्षा बुक करने और देने का अवसर दिया जा सके।"
यदि एनआरए एक नवनिर्मित आवास था तो इसमें रहना शुरू करने की कोई तारीख नहीं थी -- बस एक रूपरेखा थी कि यह भविष्य के किसी अनिश्चित समय में कैसा दिख सकता है।
एनआरए की संरचना में ही गड़बड़ी थी। सरकार का संकेत था कि इसे एक रजिस्टर्ड सोसायटी के रूप में स्थापित किया जाएगा लेकिन आंतरिक रूप से यह एक कंपनी की तरह काम करेगी। नियमानुसार एक सोसायटी को अपेक्षाकृत सरल रिपोर्टिंग और एकाउंटिंग मानदंडों का पालन करना होता है। इसके विपरीत, एक कंपनी को अपने खातों और कामकाज की रिपोर्ट सरकार को देनी होती है, और यह रिकॉर्ड सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराए जाते हैं।
सरकार ने आगे कहा कि एनआरए स्वायत्त रूप से कार्य करेगी, फिर भी उसी आदेश की एक अन्य पंक्ति में यह कहकर इसकी स्वायत्तता कम कर दी गई कि "भारत सरकार अपनी नीतियों के संबंध में एनआरए और शासी निकाय को निर्देश देगी और एनआरए ऐसे निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य होगी।"
अति-महत्वाकांक्षी योजना
घोषणा के एक साल बाद भी एनआरए पर काम जारी रहा। 10 फरवरी, 2021 को तत्कालीन कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा को सूचित किया कि एनआरए 2021 में अपनी पहली परीक्षा आयोजित कर सकती है।
यह वादा गलत सबित हुआ था। एनआरए ने काम करना शुरू नहीं किया, एक और साल बिना किसी प्रगति के बीत गया। मई 2022 में सरकार ने दावा किया कि साल के अंत तक एनआरए गैर-राजपत्रित पदों के लिए एक केंद्रीय परीक्षा आयोजित करेगा।
सरकार की बड़ी-बड़ी बातें जारी रहीं। मंत्री जितेंद्र सिंह ने एनआरए को एक "अग्रणी" और "ऐतिहासिक" सुधार बताया, जो "युवाओं के लिए एक बड़ा वरदान साबित होगा, विशेष रूप से दूर-दराज और रिमोट इलाकों में रहने वाले युवाओं के लिए।"
उन्होंने महत्वपूर्ण प्रगति का सुझाव देते हुए दावा किया कि "परीक्षा हिंदी और अंग्रेजी सहित 12 भाषाओं में आयोजित की जाएगी, और बाद में संविधान की 8वीं अनुसूची में मौजूद सभी भाषाओं में परीक्षा ली जाएगी।"
हालांकि, आंतरिक रूप से एनआरए को अभी भी पाठ्यक्रम, परीक्षा की योजना और शुल्क संरचना को अंतिम रूप देना था और छात्रों के लिए एक निष्पक्ष प्रणाली बनानी थी। मार्च 2022 से कुछ समय पहले एक विशेषज्ञ सलाहकार समिति का गठन किया गया था ताकि यह पता लगाया जा सके कि किस तकनीक का उपयोग किया जाए। एक साल से अधिक समय के बाद भी समिति के निष्कर्षों की स्थिति स्पष्ट नहीं है।
सरकार ने लोगों के सामने जो समयसीमा रखी थी वह पहले ही पार हो चुकी थी। अगस्त 2023 में संसदीय स्थायी समिति द्वारा पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, एनआरए एक 'डिजिटल प्लेटफॉर्म' बनाना चाहता था, जिसके लिए सरकार की सूचना विज्ञान शाखा, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने जुलाई 2022 में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। रिकॉर्ड के अनुसार, एनआईसी को एक संशोधित प्रस्ताव भेजना था, और सहमति मिलने के बाद एनआईसी की सॉफ्टवेयर टीम को एनआरए का डिजिटल पोर्टल चालू करने में आठ से दस महीने का समय लगना था।
इसके बाद ही एनआरए वास्तव में परीक्षा आयोजित करने पर विचार कर सकती थी, जैसा कि सरकार और संसदीय रिकॉर्ड से संकेत मिलता है। इससे साफ़ होता है कि साल के अंत तक 12 भाषाओं में परीक्षाएं आयोजित नहीं की जा सकती थीं, जैसा कि सरकार दावा कर रही थी।
जैसा कि अपेक्षित था, यह समय सीमा भी समाप्त हो गई। एनआरए के तीन सालों के कामकाज के लिए जो 1,517 करोड़ रुपए रखे गए थे, उनमें से दिसंबर 2022 तक सरकार ने केवल 20.50 करोड़ रुपए खर्च किए। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 13.85 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, और वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 396 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, लेकिन दिसंबर 2022 तक कोई पैसा नहीं दिया गया था। यह जानकारी इस रिपोर्टर द्वारा दायर एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) अनुरोध में सामने आई है।
एनआरए की घोषणा के तीन साल बाद, अगस्त 2023 में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला ने सरकार से एक बार फिर पूछा कि एजेंसी एक पूर्ण परीक्षा प्रणाली स्थापित करने और चलाने की बात तो दूर, एक भी परीक्षा आयोजित करने में विफल क्यों रही है। इस बार, बड़े-बड़े दावों की जगह एक लंबे-चौड़े तकनीकी बहाने ने ले ली।
10 अगस्त, 2023 को, राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद में सुरजेवाला को जवाब देते हुए कहा, "ग्रुप बी और सी पदों के लिए सीईटी का आयोजन एक बहुत बड़ा बदलाव है, जिसके लिए पूरे देश में सीईटी के विभिन्न चरणों हेतु मानदंडों/दिशानिर्देशों के अलावा विश्वसनीय आईटी और भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता जरूरी है। इसलिए, सीईटी को केवल आईटी और भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने और इसके लिए विभिन्न चरणों के लिए मानदंड/दिशानिर्देश विकसित होने के बाद ही लागू किया जा सकता है।"
तीन साल बाद, केंद्र सरकार और उसके सख्त निर्देशों के तहत काम करने वाली एनआरए, बुनियादी व्यवस्था स्थापित करने में भी विफल रही।
सरकार ने 2020 में दावा किया कि परीक्षा देश भर के 1,000 केंद्रों पर आयोजित की जाएगी, जो देश के सभी जिलों में होंगे। हालांकि, अगस्त 2023 में इस रिपोर्टर द्वारा दायर एक अन्य आरटीआई के जवाब में, सरकार ने माना कि अभी परीक्षा केंद्रों का चयन नहीं किया गया है।
इस दौरान एनआरए खुद ही नियोजित क्षमता से नीचे काम कर रही थी। इसके सात क्षेत्रीय कार्यालय होने चाहिए थे, लेकिन एक भी स्थापित नहीं किया गया। एनआरए के मुख्यालय में 33 स्वीकृत पदों में से 24 (72%) खाली रहे।
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत दायर आवेदनों के जवाब ने सरकार की सुस्ती को उजागर किया। एनआरए एक शीर्ष स्तरीय गवर्निंग बॉडी के मार्गदर्शन में संचालित होती है जिसमें एक अध्यक्ष और आठ सदस्य होते हैं, जो कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, रेलवे और कर्मचारी चयन आयोग सहित विभिन्न संगठनों से आते हैं।
एनआरए की स्थापना के बाद से इस गवर्निंग बॉडी की केवल दो बार बैठक हुई। एक 21 जून, 2022 को और एक 12 जनवरी, 2023 को। सरकार ने गोपनीयता का हवाला देते हुए इन बैठकों का विवरण देने से इनकार कर दिया।
इसी दौरान केंद्र सरकार को कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की आलोचना का सामना करना पड़ा।
अगस्त 2023 में समिति ने एक रिपोर्ट में कहा, "समिति इस बात पर जोर देती है कि बहुप्रतीक्षित नेशनल रिक्रूटमेंट एजेंसी (एनआरए), जिसे समूह 'बी' और समूह 'सी' कर्मचारियों के लिए परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया गया था, अभी तक पूरी तरह कार्यात्मक नहीं है।"
रिपोर्ट में कहा गया कि एनआरए ने साढ़े तीन साल बाद भी काम शुरू नहीं किया है, और जानना चाहा कि एजेंसी वास्तव में कब काम करना शुरू करेगी।
रिपोर्ट में कहा गया, "पूरी तरह कार्यात्मक होने में एनआरए और दो साल का समय नहीं ले सकती।"
समिति के सदस्यों का मानना था कि इस धीमी गति को देखते हुए, एजेंसी को कम से कम छोटे पैमाने की परीक्षाएं शुरू करने का प्रयास करना चाहिए।
“समिति एनआरए को स्नातक स्तर की परीक्षाओं से शुरुआत करने की सलाह देती है ताकि आवश्यक पात्रता वाले उम्मीदवारों की संख्या कम हो जाए। यदि शुरुआत ऐसी परीक्षा से होती है जिसके लिए 10वीं कक्षा की पात्रता है, तो सभी स्नातक अपनेआप इसके पात्र हो जाएंगे, और अभ्यर्थियों की इतनी बड़ी संख्या का प्रबंधन असंभव होगा," समिति ने कहा।
यहां तक कि एनआरए को परीक्षा के आयोजन पर एसएससी जैसी दूसरी एजेंसियों से सलाह लेने के लिए कहा गया -- उन्हीं एजेंसियों से जिनकी जगह आंशिक रूप से एनआरए को लेनी थी।
यह रिपोर्ट 2023 में आई थी।
फरवरी 2024 तक ऐसा लग रहा था कि सरकार एनआरए को भूल गई है। जब सरकार ने परीक्षाओं में नकल और पेपर लीक को रोकने के लिए जल्दबाजी में एक कानून पारित किया, तो सभी केंद्रीय भर्ती एजेंसियां, जैसे यूपीएससी, एसएससी और आरआरबी इसके दायरे में थीं, लेकिन एनआरए का नाम नदारद था।
वित्तीय वर्ष 2024-25 शुरू हो चुका था, लेकिन एनआरए और सामान्य पात्रता परीक्षा अभी शुरू होनी बाकी थी। लेकिन आम चुनाव नजदीक थे। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस संदिग्ध रिकॉर्ड को और भी बड़े वादों के पीछे छिपा लिया।
अपने घोषणापत्र में पार्टी ने दावा किया, "हमने सरकारी भर्ती परीक्षाओं का पारदर्शी आयोजन कर लाखों युवाओं को सरकारी नौकरियों में भर्ती किया है। हम आगे भी सरकारी भर्तियां समयबद्ध और पारदर्शी तरीके से करते रहेंगे।"
हालांकि घोषणापत्र में एनआरए का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया गया था, लेकिन यही एकमात्र नई प्रणाली थी जिसे सरकार ने 'पारदर्शी और समयबद्ध' परीक्षाएं कराने के लिए बनाया था।
हालांकि सरकार केंद्रीय नौकरियों के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित करने में विफल रही, फिर भी भाजपा अपने 2024 के घोषणापत्र में यह कहने से नहीं चूकि कि "हम सरकारी परीक्षाओं के सफल आयोजन के लिए इच्छुक प्रादेशिक सरकारों को भी सहयोग देंगे"।
अब नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में आ गए हैं, लेकिन कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट का वादा एक सपना बनकर रह गया है जो सच नहीं हो पा रहा है। प्रांजय जैसे अभ्यर्थी रद्द होने और पेपर लीक होने के डर के बावजूद कई परीक्षाओं में बैठते रहते हैं।
हालांकि एनआरए ने लिखित प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया, एक अधिकारी ने ऑफ द रिकॉर्ड बोलते हुए द कलेक्टिव को बताया कि परीक्षा पाठ्यक्रम, देश भर में 1,000 परीक्षा केंद्रों की पहचान और पहले कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट की तारीख तय करने का काम जारी है।
सूचक पटेल टीआरसी इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग फ़ेलोशिप प्राप्तकर्ता हैं। वह एक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं।